Sunday, June 22, 2014

माँस खाना चाहिए या नहीं ?

| ओ३म् |


 वैदिक सिद्धांतो पर आधारित

"दो मित्रो की बातें" - पंडित सिद्ध गोपाल कविरत्न


माँस खाना चाहिए या नहीं ?



कमल - क्या मनुष्यों को माँस खाना चाहिए ?



विमल - नहीं ।



कमल - क्यों?



विमल - इसलिए कि माँस बिना प्राणियों को पीड़ा दिए प्राप्त नहीं होता और अपने स्वार्थ के लिए किसी को अकारण पीड़ा देना मनुष्य का धर्म नहीं है ।



कमल - इस दृष्टि से तो किसी को शाक, फल आदि भी न खाना चाहिए, क्योकि उनमें भी जीव हैं उनको भी पीड़ा पहुंचती है । जब वनस्पति में भी जीव हैं तो उनको भी दुख पहुंचेगा ही?



विमल - तुम्हारा प्रश्न तो यह था कि माँस खाना चाहिए या नहीं! मैंने उत्तर दे दिया कि नहीं खाना चाहिए । यहाँ यह प्रश्न नहीं है कि वृक्ष और वनस्पति में जीव हैं या नहीं? और अगर यही बात हो कि जिसमें जीव होता है उसमें माँस होता है, तो साबित करो, वृक्षों और शाक फलों में माँस कौन सा है जिसे न खाना चाहिए । सुनो! फलों और सब्जियों में 'रस' होता है, रक्त और माँस नहीं होता। क्योंकि कोई नहीं कहता, आम का माँस खाओ, नीबू का माँस खाओ, सेब, सन्तरे का माँस खाओ । सब यहीं कहते हैं, सन्तरे का रस लो, आम का रस लो । "रस" कही से और किसी का लो, चाहे सन्तरे का चाहे गन्ने का रस सेवन करने में कोई दोष नहीं है । दोष तो खून और माँस के खाने में है । जहाँ-जहाँ खून और माँस का सम्बन्ध है, वहाँ प्राणी को दु:ख होता है । जहाँ 'रस' हैं वहाँ दुःख का कोई सम्बन्ध नहीं है । किसी भी प्राणी का 'रस' निकालने पर उसे कोई दुःख नहीं होता । जैसे 'गोरस' अर्थात गाय का दूध, उसके निकालने में गाय को क्या दुःख है? यदि गाय के थन 'गोरस' अर्थात, दूध से भर रहे हों और न दुहा जाये तो देखा गया है गाय रंभाने लगती है, इसलिए कि दूध दुह लिया जाये । परन्तु जहाँ गाय या किसी जानवर का रक्त माँस निकाला जाता है वहाँ उसे दुख होता है ।



कमल - यदि फलों और सब्जियों में मांस नहीं है तो उनमें जो गूदा है वह क्या है? वहीं तो मांस है?



विमल - अगर फलों और सब्जियों का गूदा ही माँस है, तब तो हलवाई के रसगुल्ले और गुलाब जामुन को भी माँस कहा जा सकता है । क्योंकि गूदा तो उसमें भी होता ही है! परन्तु रसगुल्ले को कौन माँस कहेगा? माँस वस्तुत: वही है, जहाँ रक्त है । जहाँ रक्त नहीं वहाँ माँस कैसा ? वृक्षों और फल फूलों में रस है, रक्त नहीं । जब रक्त ही नहीं है तो माँस कहाँ से आयेगा? शरीर की धातुओं में सबसे पहली धातु 'रस' से रक्त बनता है और रक्त से माँस बनता है और माँस से अन्य धातुयें उत्पन्न होती हैं । आज जो भोजन किया जायेगा, उसका पचकर पहिले रस बनेगा । उस रस का फिर रक्त बनेगा और फिर माँस बनेगा | माँस तीसरी स्टेज है । जब कुदरत ने प्राणी के शरीर में रस का माँस बना दिया फिर किसी प्राणी के माँस को खाकर "रस" बनाना और फिर माँस बनाना सृष्टि क्रम के विरुद्ध भी है ।



कमल - तो फिर अण्डे खाने में तो शायद कोई भी दोष न होगा, क्योंकि अण्डे में तो माँस नहीं है, शायद 'रस' ही है?


विमल - अण्डा रज वीर्य के संयोग का पिण्ड है । उस पिण्ड से वही प्राणी उत्पन्न होते हैं जो रक्त माँस वाले हैं। किसी भी रक्त माँस वाले प्राणी की नींव को नष्ट करना क्या मनुष्य का धर्म है, वो भी स्वार्थ पूर्ति के लिए? हर्गिज नहीं ।



कमल - मै तो देखती हूँ कि दुनियाँ के थोड़े लोगों को छोड़कर सब माँस ही खाते हैं । इससे पता चलता है कि माँस खाना कोई बुराई की बात नहीं । कुछ ऐसा भी पता चला है, कुदरत ने मनुष्य को माँस भोजी बनाया है ।



विमल - यह कोई युक्ति नहीं है कि जिस काम को अधिक लोग करते हैं वह काम अच्छा ही होता है । संसार में झूठ बोलने वाले अधिक हैं सत्य बोलने वाले कम तो क्या झूठ बोलना अच्छी चीज है? दुनियाँ में पापी अधिक, पुण्यात्मा कम हैं तो क्या पापी अच्छे कहै जायेंगे? संसार में घास फूंस अधिक फल वाले वृक्ष उससे कम, चन्दन आदि के उससे भी कम । मिडिल वाले अघिक, एन्ट्रेन्स वाले उससे भी कम, बी०ए० वाले उससे भी कम और एम०ए० वाले उससे भी कम । तो क्या एम०ए० पास कम होने के कारण बुरे कहे जायेंगे । संसार में अच्छे और सच्चे लोग बहुत कम होते हैं । बुराई फैलते हुए देर नहीं लगती, भलाई के लिए कोशिशें करनी पड़ती है । कपड़े पर मैल बिना परिश्रम के ही लग जाता है । परन्तु धोने में परिश्रम करना पड़ता है । मनुष्यों को ईश्वर ने माँस भोजी नहीं बनाया, ये आदत मनुष्य ने अपने में डाल ली है । क्या संखिया अफीम जैसी चीजें खाने के योग्य हैं? परन्तु मनुष्य इन चीजो के भी आदी देखे जाते है ।



कमल - इसका क्या सबूत कि मनुष्य माँस भोजी नहीं हैं?



विमल - यह तो मनुष्य के शरीर की बनावट से ही जाहिर है । प्रथम तो मनुष्य के वैसे नाखून और दाँत नहीं हैं जैसे माँसाहारी प्राणियों के हैं । मनुष्य माँस को काट छांट कर, बनाकर, घी, मिर्च और मसाले मिलाकर पकाता है और अपनी जुबान और  दांतों के अनुकूल बनाने की चेष्टा करता है | माँसाहारी प्राणियों के नाखून अन्य प्राणियों के मारने-फाड़ने के अनुकूल है और उनकी जुबान कच्चे माँस का स्वाद लेने के अनुकूल है, मनुष्य के नहीं । दूसरे माँसाहारी जितने भी प्राणी हैं उन्हें पसीना नहीं आता। मनुष्य को पसीना आता है । तीसरे - माँसाहारी समस्त प्राणी पानी चप-चप कर पीते हैं मनुष्य घूँट-२ पानी पीता है । चौथे माँसाहारी प्राणियों की आँखें गोल होती हैं, परन्तु मनुष्य की आँखें बादाम जैसी चपटी हैं। एक जगह मैंने पढ़ा है, जितने मांसाहारी प्राणी हैं ये सन्तानोत्पादन की क्रिया में परस्पर जुड़ जाते है । बिल्ली, कुत्ता, शेर, भेडिया आदि सबको ऐसा देखा गया है । ऐसी बहुत सी युक्तियों दी जा सकतीं हैं जिनसे प्रकट है कि मनुष्य माँसाहारी प्राणियों में नहीं हैं ।



कमल - मांसाहारी वीर होते हैं माँस में बड़ी शक्ति होती है, कुछ लोगों का ऐसा ख्याल है |



विमल - माँसाहारी अधिकाँश में बेरहम और खूँखार हो सकते है, वीर नहीं । वीरता और चीज है, और बेरहमी और चीज । हाँ, तुम यह कह सकते हो कि माँस खाने वाले लाखों आदमी इतिहास में वीर हुए हैं परन्तु वह मांस का गुण नहीं था और न है । वह असल में शिक्षा और संगति का गुण है । मांस खाने से ही वीरता आती हो तो संसार के अधिकांश लोग मांस खाते सारे के सारे वीर ही दिखाई देते । वीर असल में वह है, जो देश और जाति के हितार्थ निस्वार्थ भाव से अन्याय का अन्त करने के लिए मैदान में डट जाये, चाहे प्राण ही भले चले जाये । परन्तु पीछे को कदम कभी न रखे । किसी के घर में आग लगा दी, किसी को लूट लिया, किसी पर धोखे से वार कर दिया, किसी को छुरा घुसेड़ दिया, किसी की स्त्री भगाली - क्या इसका नाम वीरता है? बहुतेरे गुण्डे इस प्रकार का कृत्य करते देखे जाते हैं क्या वह वीर है? हरगिज नहीं । वे पापी और अत्याचारी हैं ।



कमल - सुना जाता है माँस खाने से बल आता है । शेर, भेड़िये, चीते आदि जानवर कितने बलवान् होते हैं? वे माँस ही खाते है । शेर, हाथी तक को मार लेता है। इससे पता चलता है कि मांस में बहुत बल है ।



विमल - क्या माँस न खाने वाले जानवर बलवान् नहीं हैं । गाय, घोड़ा, साँड आदि जानवर क्या कम बलवान् हैं? संसार भर की मशीनों को शक्ति का परिमाण घोड़ो की शक्ति से ही तो लगाया जाता है | सूअर इतना बलवान् होता है कि सामने पड़ने पर शेर के भी दांत खट्टे कर देता है । दो शेरों के मध्य में एक सूअर पानी पी सकता है, परन्तु दो सुअरों के मध्य में एक शेर पानी नहीं पी सकता । शेर हाथी से ज्यादा बलवान नहीं है । कभी-२ जंगली मतवाला हाथी जब जंगल में घूमता है, सारे अन्य पशु डरकर भागते हैं । शेर हाथी पर काबू अपने दांतों और पंजों से पा लेता है, ताकत से नहीं । देखो! दो आदमी हों, एक शरीर में बहुत बलवान हो दूसरा शरीर में कमजोर | परन्तु कमजोर मनुष्य के पास भाल, बर्छी, पिस्तौल या बन्दूक हो तो वह बलवान पर काबू पा लेगा और उसे मार भी डालेगा। क्यों? इसलिए कि उसके पास शस्त्र की ताकत है । यदि कहीं शेर की तरह हाथी पर पैने दांत और नाखून होते और उसकी आँख छोटी न होती, तो संसार में हाथी किसी प्राणी को न रहने देता। हाथी, ऊँट, भैंस, भैसा आदि जानवर जो माँस नहीं खाते बड़े बलवान हैं । वे लाचार यदि हो जाते हैं तो शस्त्रों के अभाव में ही हो जाते है । तुम बल की बात क्या पूछते हो, बल तो सोना, चाँदी, लोहा, तांबा आदि धातुओं की एक एक रत्ती में भी मौजूद है वह मनों मांस में नहीं है। वह-वह औषधियाँ और वनस्पतियाँ मौजूद है जिनकी एक-एक मात्रा में अत्यन्त गर्मी और शक्ति मौजूद हूँ । मांस में क्या शक्ति है? 


कमल - जिन देशों में अनाज पैदा नहीं होता वहाँ के मनुष्य तो मांस पर ही गुजारा करते है । आइसलैण्ड अथवा उत्तरी ध्रुव के प्रदेशों में सुना जाता है मांस के ऊपर ही लोगों का जीवन निर्भर है | उनका तो मांस स्वाभाविक भोजन है |

विमल - अगर उन देशों के निवासियों का स्वाभाविक भोजन माँस हो तो वे मनुष्य न होंगे, या होंगे भी तो मनुष्य की आकृति से निम्न होंगे । उनके दांत और नाखून भी माँस को चीरने और फाड़ने  के अनुकूल ही होंगे । यदि हमारे जैसे ही वहाँ के नर नारी हैं तो माँसाहारी कैसे? क्योंकि हमारे दांत नाखून माँस खाने के योग्य ईश्वर ने नहीं बनाये हैं । हाँ, उन लोगों ने माँस खाने की आदत डाल ली होगी जहाँ मनुष्य पहुँच सकता है, वहाँ पर चीज पहुँच सकती है । यदि कहा जाये, वहाँ अनाज उत्पन्न नहीं किया जा सकता और वहाँ की पृथ्वी भी इस योग्य नहीं जो मानव जीवन की आवश्यक  वस्तुयें सम्पादित कर सके तो वहाँ मानव का बसना ही व्यर्थ है। वास्तव में माँसाहार की पुष्टि के सम्बन्ध में सब दलीलें थोती और व्यर्थ है ।



कमल - संसार में आर्थिक प्रश्न भी तो है, जहाँ अनाज कम होता है वहाँ मछली आदि बहुतायत से होती हैं । वहाँ के गरीब आदमियों का गुजारा मछली आदि जानवरों के माँस से होता है । यदि माँस न मिले तो संसार की आर्थिक समस्या कितनी खराब हो जाये?



विमल - संसार के किसी भी देश को देखे, जब भी प्रश्न उठता है, रोटी का प्रश्न उठता है । आज भी सारे संसार में रोटी का ही प्रश्न और समस्या है । दाल, शाक, चटनी, मुरब्बे, रायते, कढी और माँस का प्रश्न नहीं है । क्योंकि वह सब चीजें रोटी से लगाकर खाने की हैं, जायके और लज्जत की हैं जुबान को खुश करने की है, पेट भरने और शक्ति प्रदान करने की नहीं है । 'रोटी' मुख्य है और सब चीजे गौण हैं । शरीर का मुख्य आधार रोटी है, और यही संसार का प्रश्न है । आर्थिक प्रश्न सदैव रोटी से सम्बन्धित है, और रहेगा भी ।



कमल - अच्छा, माँस खाने में विशेष हर्ज ही क्या है?



विमल - माँसाहारी ईश्वर भक्त नहीं हो सकता क्योकिं तामसिक भोजन से विचार भी तामसिक ही होगे सात्विक नहीं । संसार में जो भी भगवान् के सच्चे भक्त बने वे या तो माँस खाते ही नहीं थे । यदि खाते भी थे तो बाद में खाना उन्होंने छोड़ दिया । तब उन्हें अन्तरात्मा की ज्योति का पता चला । यह ठीक है जो माँस नहीं खाते वह भी ईश्वर भक्त नहीं दिखते आडम्बरी दीखते हैं । उन लोगों में भी चोरी, दगा, फरेब, झूठ बोलना आदि दुर्गुण मौजूद है । पर जो आदमी पापों से रहित और निरामिष भोजी हैं वहीं ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है । अतएव मांस खाना अत्यन्त निषिद्ध है |



कमल - अच्छा मित्र, यह तो बताओ कि क्या ईश्वर से ही समस्त सृष्टि बनी है?



विमल - यह कल बताऊँगा ।

| ओ३म् |

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